New Love Poetry sms in Urdu

 Love Poetry sms in Urdu read and enjoy don't forget to share with friends and social networks..

Greedy was deeply eaten around the lumps

Their fortresses were magnificent of the palaces

He was exposed to the innocent people

He himself was touched by the sun, tries



All were poor, and the devastation was a devastation

But it was forbidden to resist oppression

If anyone asks for justice then understand it was self

It was not permissible to die or was allowed to die



They started saying

I did not tolerate this cruel exploitation many days

Self-injustice had brought down the Paddle Delta

Rescue Ram raised a rebellion



The power of the new power was an earthquake

No army or helpless army came

From morning to evening till, which was facing Munich's injustice

All the wild Goddess ran away



Every course of the new human power was to get rid of

Endangered speed

That was the wilderness of the evil mockets

Samarai fence was stuck


Here there were only stones and stones in your hands

I was the only ideal living place

Ending the last error system to end it



New was Kamna, Note, a message was not a note

It was new, efficient, neo-concept, environment-oriented

New was the end of the life to save the breakfast

It was new, free of charge, free of charge


The superstar's star was opened

When Abi Assh was found on the battlefield

Someone lamented the golden lump



King gold donkeys showed flexibility

The enemies of the pointed camels showed a little up

The sound of peace was burning

Manuel's monster was challenging today



Vijay's rage used to flow, he had a desire

The angel was breathing, every morning

Restaurants at the Sacramento Night Zonal were restaurants

They used to get naked in the new eye



The clock used to be the last understanding of the local

The bubble was again the same

The new gaga used to cover breakfast skins

New holes, new waves were making its level



Wonders of Ages - When the power left the power

There was a horrible stone of any trouble system

Rawana was shaved and he used to smell

The last era, Murcia Gita, was a new moon



Many days later, the sensation of the hearts of the people was stunned

It was a man who was again free

Show a handful of fist public-telegraphs used to sing

It was also a pleasure in the new construction forest



The heart of the heart wrote to the wrap

The new compelled of the new cone was called, a new clerk

The new eyebrows glow in the eyebrows

From the time of money



The rainbow was returned home to Syria

New non-immigrants held a new event

Find out the new earth again

Everyone had sown fields



It was darker, I was black at night

But the intention of the inner man's innings is that it was indeed




The person who had the first visit to the Sailor was welcome

The light of the light was the light of itself



That was in your new voice

The river was sauce more than paradise, was prosperous

That's the same



Scratch-shade when it was fried

When Ganguly was yesterday, the street calls tomorrow

Cheats, when the character is stuck with affection

While taking a bath, when the bridge of effect is bridge-bridge



You are getting scared today

Today is not at home

Today, I do not have the courage of Jaiti

Sogalta Gul of Dry Vicinity today

Deep Deeping Understanding Deep



The sign of the previous era in the rest of the rest

You are listening to Self-Punishment, such as the story

Your story like being made



But John is going geographically

Water will rise again and again

Water is burning, burning water





घिरी लंका के चारों ओर गहरा गूढ़ खाई थी
इन्हीं गड्ढों से महलों की गगनभेदी ऊँचाई थी
हज़ारों अस्मतों को लूटकर वह खिलखिलाता था
स्वयं सूरज तमस से तुप गया था, तिलमिलाता था

सभी भूखे थे नंगे थे, तबाही ही तबाही थी
मगर अन्याय का प्रतिरोध करने की मनाही थी
किसी ने न्याय माँगा तो समझ लो उसकी आफ़त थी
न जीने की इजाज़त थी न मरने की इजाज़त थी

धरा को क़ैद कर आराम से वह रह न सकता था
मनुज इस क्रूर शोषण को बहुत दिन सह न सकता था
स्वयं अन्याय ने पीड़ित दलित को ला जुटाया था
प्रवासी राम ने विद्रोह का बीड़ा उठाया था

नये संघर्ष की यह शक्ति धरती ने जगायी थी
किसी अवधेश या मिथिलेश की सेना न आयी थी
सुबह से शाम तक जो राक्षसी अन्याय सहते थे
जिन्हें सब जंगली हैवान बन्दर भालु कहते थे

नयी जनशक्ति की हर साँस से हुंकार उठती थी
प्रबल गतिरोध के विध्वंस की धधकार उठती थी
कि बर्बर राक्षसों का जंगली वीरों से पाला था
महीधर फाँद डाले थे समुन्दर बाँध डाला था

उधर थी संगठित सेना अनेकों यन्त्र दुर्धर थे
इधर हुंकारते हाथों में केवल पेड़-पत्थर थे
मगर था एक ही आदर्श जीने का जिलाने का
विगत जर्जर व्यवस्था को स्वयं मिटकर मिटाने का

नयी थी कामना, नवभावना, संदेश नूतन था
नयी थी प्रेरणा, नव कल्पना, परिवेश नूतन था
नया था मोल जीवन का विषमता ध्वंस करने का
नया था कौल मानव का, धरा को मुक्त करने का

चली क्या राम की सेना कि धरती बोल उठती थी
अखंडित शक्ति का भण्डार अपना खोल उठती थी
धरा की लाड़ली की जब अभय आशीष पायी थी
किसी हनुमान ने तब स्वर्ण की लंका जलायी थी

कँगूरे स्वर्ण-सौधों के धरा लुंठित दिखाते थे
नुकीले अस्त्र दुश्मन के निरे कुंठित दिखाते थे
अमन का शंख बजता था दमन की दाह होती थी
मनुज की दानवों को आज खुल करके चुनौती थी

विजय का बिगुल बजता था, अनय का नाश होता था
अँधेरा साँस गिनता था, सबेरा पास होता था
सिसकती रात के अंचल में रजनीचर बिलखते थे
उभरती उषा की गोदी में नव अंकुर किलकते थे

घड़ी अन्तिम समझ दनुकुल जले शोले गिराता था
प्रबल जनबल उन्हें फिर मोड़ उन पर ही फिराता था
नयी गंगा विषमता के कगारों को ढहाती थी
नयी धारा, नयी लहरें उसे समतल बनाती थी

युगों की साधना-सी राम ने जब शक्ति छोड़ी थी
किसी जर्जर व्यवस्था की विकट चट्टान तोड़ी थी
कटे सिर-सा पड़ा रावण धरा पर छटपटाता था
विगत युग मर्सिया गाता, नया युग गान गाता था

बहुत दिन बाद दलितों की हँसी की आज पारी थी
कि फिर से मुक्त था मानव कि फिर से मुक्त नारी थी
बँधी मुट्ठी दिखा जन-टोलियाँ जय-गान गाती थीं
कि नव निर्माण के जंगल में भी मंगल मनाती थी

धरा की लाड़ली प्रिय से लिपटने को ललकती थी
नयी कोंपल के होठों से, नयी कलिका किलकती थी
चपल चपला-सी आँखों में नयी आभा झलकती थी
सुधा के युगकटोरों से मदिर छलकन छलकती थी

सबेरे का भटकता शाम को घर लौट आया था
नयी उन्मुक्त जनता ने नया उत्सव मनाया था
छिनी धरती मिली फिर से नये सपने सँजोए थे
सभी ने खेत जोते थे सभी ने बीज बोए थे

घिरा काली घटाएँ थीं अमा की रात काली थी
मगर मानव-धरा के सम्मिलन की बात ही ऐसी निराली थी

अयोध्या में नये युग को बुलाने की बेहाली थी
कि जिसके साज स्वागत में सजी पहली दिवाली थी
धरा की लाड़ली ने स्वयं जिसकी ज्योति बाली थी
विकल सूखे हुए अधरों में नव मुस्कान ढाली थी

कि अस्त-व्यस्त तारों में नयी स्वर तान ढाली थी
धरा में स्वर्ग से बढ़कर सरसता थी, खुशहाली थी
वही पहला जनोत्सव था वही पहली दिवाली थी

लहलहाती जब धरा थी, शस्य-श्यामल
गुनगुनाती जब गिरा थी गीत कल-कल
छलछलाते स्नेह से जब पात्र छ्लछल
झलमलाते जब प्रभा के पर्व पल-पल

आज तुम दुहरा रहे हो प्रथा केवल
आज घर-घर में नहीं है स्नेह सम्बल
आज जन-जन में नहीं है ज्योति का बल
आज सूखी वर्त्तिका का सुलगता गुल
दीप बुझते जा रहे हैं विवश ढुल-ढुल

शेष खण्डहर में विगत युग की निशानी
सुन रहे हो स्वपन में जैसे कहानी
बन गई हो जिस तरह अपनी बिरानी

किंतु जन-जागृति धधकती जा रही है
जल उठेगी फिर नयी बाती सुहानी
जल रहे हैं दीप, जलती है जवानी



New Love Poetry sms in Urdu Reviewed by somi on August 09, 2017 Rating: 5

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