Most Romantic Poetry

Most Romantic Poetry for our users this is a heart touching poetry.

Even today I got a big night in the morning

Snapshot of nine metabolic is empty



Dry dried, cheek pitches, dental caterpillar eyes

The Shellab Unspecified Chattate Clean Mineral Wheels

Rotate cats in the modi environment

Increased rate of ratios, odor bursts, roads-c


Shock-wonders flow

Lost person - all the heart's heart

And domination to live



The first one was unclean one day or the other

The sun, the vine, the secret was lost, the sleep was lost

A black hand washed with linen lace

Goggles This, what happened should have happened



The era was a rumor of the agricultural tribe

The caravan buses had been living, Jam

Pradeep of Jyoti life was burnt in the hills

Dara's daughter's daughter-in-law has become a daughter-in-law



The zodiac of the earth itself selfish, self-sufficient

Lakshmi Alaj Achri, who had been sitting in the solution of the solution



Jammu Bahubal was the excuse of independence

Who had to climb on Panaana Pankey's hunger

What was not

No unspeakable target was found



The spirit of heart broke the dragon

If you had to build a new one then it was old



It's definitely awful

Open Earth, Sita Mill


He won only the same

Who's the one?




The ax was trying to bury

The golden wall was kept in the dark in the burning fire

In Tria, I used to have a dhashasham chest



The boat is a man that boat was dirty


That was the Arhar hole, that was the rage

That radical eye used to be, that's why I came to the jaw



Neon called dreams, love was in my heart

The crop crops became a source of awareness

The wind took the back of two hands forward

He woke up without hesitation



Hearts, hearts, hearts were constant

The new canal was out, the flowers of the moon were opened

Lisa ran away when the fire came



The ground or the mountain burnt on the ground

A new look, a dry shower, pleasant past

The patient used to say what he wanted

At the height of any standing farms in the night

The lawyer spoke to Vera



Fluffy lips, dried palms

Then the demand was sought

There was a sudden heart trousers

The naked was awake too



Neither was the golden name

Joe Clarke

Many people become 'corrupt'

From darkness to light



There was a lot of breath

The bottom was raised

I had a new dream in the eyes of midnight



Emerging respiratory chest

That's Chile

Cats from anywhere

The steep was called chip



In the climbing sound

I used to run

Raviation increases blood

The sea was drying



Peng recipes in the air

Haali was shouting,

Self-Determination

Was making a new entity



That nine-time time

Ways to sleep

On the go

Sunny did not lose-lose



That Pleasure of Cosmic

I could not find it

Fishing from fishing

Osha was also opened

New addresses on the leaflets

The new pearl was rolled out



That day was depressed

That was Deep Deep in three

That was Deep Deep in heart

Deepa was deep in Naka

The recipe was light



The Deep festival of the Deep was a home-made home

Stroke affection was a new ton gongonata on the pong-pong

The P Forest was the only way to travel to the river

Everybody was young at all



Timothy did not go anywhere with new biotech pads

There was no fault or fault of mourning

Disgracefulness

Jagjag was jealous of his heart



The one who brought Rauhan black to the yogurt

One of the best Kaurakram demolitions runs a run

Take a look at the green gray brown town



The one who made the world of evil world

Thousands of houses were up, Devali herself was upset

The poor golden clay had the poorest earnings



Cobra and 'Andra the door pp' used to be

Wind feathers used to swallow water

Self-emerald was working hard to deal with

The way the living lord was alive



The powers of power whose security was private

Thousands of shades were decorated

The bodies of billions made the Ambers on the throne

The closure of the bandwidth which was made



After all, who called all ten glasses

Twenty-two people called bin Laden

The air's air was the sea-tornado

Who wrote that had planted a steep farm



Children had childhood advice

The wings and the scriptures were burnt to light

I was wandering openly



Parental preservation was stolen

The rest of farmers' households became monsters

The worker doll with a helicopter

Most Romantic Poetry



तुम मनाते हो जिसे कहकर दिवाली
यह नहीं कोई प्रथा नूतन निराली
आज भी जग में अमा की रात काली
स्नेह से नव मृत्तिका के पात्र खाली

अधर सूखे, गाल पिचके, दीन कोटरलीन आँखें
शलभ बेसुध छटपटाते क्लिन्न मन विछिन्न पाँखें
मुर्दनी वातावरण में धुएँ की घूर्णित घुटन-सी
दर-ब-दर फैली हुई, बदबू विकट शव के सड़न-सी
उग रहीं कीटाणु की फसलें
प्रलय-अणुबम बरसता
खो गयी मानव-हृदय की सब सरसता
और जीने के लिए जीवन तरसता

युगों पहले एक दिन यों ही अँधेरा हो गया था
सूर्य, शनि, तारे छिपे सहसा, सवेरा खो गया था
एक काला हाथ ऊषा की ललाई धो गया था
गरज यह, जो कुछ न होना चाहिए वह हो गया था

दौर नव कृषि सभ्यता का राम बन कर रम रहा था
कारवाँ यायावरों का बस रहा था, जम रहा था
झोंपड़ों में ज्योति जीवन का प्रदीप जला गयी थी
धरा की बेटी मनुज की ब्याहता बन आ गयी थी

कि जिसके जनक ने धरती स्वयं जोती, स्वयं बोयी
कि हल की नोक में लक्ष्मी उलझ उभरी, रही खोयी

ज़माना बाहुबल का था, स्वयंवर का बहाना था
जिसे पाना पिनाकी के धनुष पर ज्या चढ़ाना था
धनुष जो झिल न सकता था, धनुष जो हिल न सकता था
बिना अच्युत हुए जिसका निशाना मिल न सकता था

धनुष को राम ने तोड़ा घने घनश्याम ने तोड़ा
नया निर्माण करना था पुराना तो पुराना था

हुई आश्वस्त भयभीता
खिली धरती, मिली सीता
कि दिशि-दिशि दुंदुभी दमकी
वही जीता, वही जीता
किया जिसने अहल्या-सी शिला
को प्रीति-परिणीता

धरा की आत्मजा कर में लिए वरमाल चलती थी
कि स्वर्णिम दीप की चल लौ अँधेरे में बिछलती थी
त्रियामा में किसी घनश्याम की छाती मचलती थी

गड़ा धन पा गया मानव कि खेती लहलहाती थी
कि गेहूँ गहगहाता था, कि मक्का महमहाती थी
कि अरहर सरसराती थी, कि बजरा हरहराता था
कि अलसी आँख मलती थी, कि जौ में ज्वार आता था

नयन में स्वप्न ढलते थे, हृदय में प्यार आता था
फसल उठती जवानी में लहरती झूम जाती थी
हवा दो हाथ आगे बढ़ उसे झुककर उठाती थी
लिपटते ही खुदी ख़ुद बेख़ुदी को चूम जाती थी

हृदय से हृदय मिलते थे, अधर से अधर मिलते थे
नयी कोंपल निकलती थी, हँसी के फूल खिलते थे
निकट जब आग आती थी तो लज्जा भाग जाती थी

गरज या दीपमाला सी जला करती थी धरती पर
नये अंकुर किलकते शुष्क बंजर, ख़ुश्क परती पर
मरुस्थल लहलहाता था कि चाहा चहचहाता था
अँधेरी रात में कोई खड़ा खेतों की मेड़ों पर
विकल विरहा सुनाता था

फड़कते होंठ, सूखे तालुओं से
फिर तरी की माँग उठती थी
अचानक दिल धड़कता था
निशा भी जाग उठती थी

न फिर सोने का लेती नाम थी
जो धुर सवेरे तक
कई संसार बनते ओ' बिगड़ते थे
अँधेरे से उजेले तक

सहम-सी साँस जाती थी
शिथिल अंचल उठाती थी
उनींदी रात आँखों में नये सपने बसाती थी

उभरती साँस छाती में
कि चोली कसमसाती थी
कहीं से धान की बाली
खड़ी चुप-चुप बुलाती थी

चढ़ी स्वर की लहर में
भावना सी दौड़ जाती थी
रवानी खून की बढ़ कर
समुन्दर को सुखाती थी

हवा में पेंग भरती थी
हिमालय को गलाती थी,
स्वयं मिटकर नयी हस्ती
नयी हस्ती बनाती थी

कि नव-निर्माण की बेला
विधाता को लजाती थी
बदलते दीप थे पर
स्नेह लौ को खो न पाता था

कि ब्रह्मानन्द का आनन्द
बासी हो न पाता था
क्षितिज से मेघ फटते थे
उषा भी खिलखिलाती थी
नये पत्तों पँखुरियों पर
नये मोती ढलाती थी

कि दिन में दीप जलते थे
कि तन में दीप जलते थे
कि मन में दीप जलते थे
निशा में दीप जलते थे
दिशा में दीप जलते थे

कि दीपों का नया त्यौहार घर-घर जगमगाता था
छलकता स्नेह पग-पग पर नयी धुन गुनगुनाता था
पवन नद नदी निर्झर में रवानी ही रवानी थी
कलि-अलि तरू-लता सब में जवानी ही जवानी थी

नये ज्योतिष्क पिण्डों से तमस की कुछ न चलती थी
कहत या महामारी की न कुछ भी दाल गलती थी
विषमता दैन्य करूणा भूख सिर धुन-धुन के रोती थी
जगाजग ज्योति से उनके हृदय में जलन होती थी

कि जो जग को रूलाने के लिए रावण बुला लायीं
अधमतम क्रूरकर्मा ध्वंस का धावन बुला लायीं
हरी खेती भरी बस्ती में जल-प्लावन बुला लायीं

कि जिसने भव-विभवमय स्वर्ण की लंका बनायी थी
हजारों घर उजाड़े थे दीवाली खुद मनायी थी
चमकते स्वर्ण-कलशों में गरीबों की कमायी थी

कुबेर ओ' इन्द्र जिसके द्वार पै दरबानी करते थे
पवन पंखा झला करता था पानी मेघ भरते थे
स्वयं यमराज चौखट से बँधे सब जुल्म सहते थे
विलासी देवगण को जिस तरह रखता था रहते थे

प्रकृति की शक्तियाँ जिसकी सलामी निज बजाती थीं
हज़ारों तारिकाएँ दीपमालाएँ सजाती थीं
करोड़ों शव के अम्बारों पै सिंहासन बनाया था
धरा की नन्दिनी को बन्दिनी जिसने बनाया था

दहलकर दम्भ से जिसको सभी दशशीश कहते थे
प्रबल आतंक से दो बाहुओं को बीस कहते थे
हवाओं की हवा उड़ती समुन्दर थरथराता था
जिसे लखकर खड़ी खेती को पाला मार जाता था

ककहरा ज़ुल्म का बच्चों को बचपन से सिखाता था
कि वेदों और शास्त्रों की सदा होली जलाता था
मनन करते हुए मुनियों की खालें खींच लेता था
घरौंदे खेलते बच्चों की टाँगें चीर देता था

पिताओं की सहेजी थातियों को छीन लेता था
किसानों के घरों के शेष दाने बीन लेता था
श्रमिक की रक्तमज्जा से रँगी जिसकी हवेली थी
धरा ने बड़े धीरज से दमन की धमक झेली थी



Most Romantic Poetry Reviewed by somi on August 20, 2017 Rating: 5

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